Wednesday, June 21, 2017

क्या वो मेरा घर था ?



क्या वो मेरा घर था ? 
धूल की परतो को चढ़ता देखती रही ,
पड़ी रही अपने ही घर के ,
चहल पहल से भरे ,
किसी वीरान कोने में ,
दूसरे सामान के बीच।
शबनम गिल 
   

Monday, June 19, 2017

Woman and door

टूटते से कन्धे,
पैरों ने साथ छोड़ा|
आँखें धुँधली हो,

देखने को तैयार नहीं,
कमर कुछ झुकी,
और झुकने को बेताब,
छोड़ जाने को,
सब ही है तैयार,
फिर भी मैं क्यूँ,
नामालुम सा, बोझ उठाये,
अब भी कहीं,
चलती ही जा रही!
-शबनम