Monday, May 15, 2017

"सारी दुनिया मेरी होगी"

Lambadi (banjara)

बचपन में जिप्सियों (Gypsy) के बारे में पहली बार  मम्मी ने बताया।  एक विदेशी मैगज़ीन मम्मी घर पर मगाया करती थी। उसमें से देख कर बहुत सुन्दर डिजाइन के हम सब के लिए स्वेटर बनाती।  उसी मैगज़ीन में मैने जिप्सियों की तस्वीरें देखी, बहुत अच्छा लगा। चलता फिरता घर, असबाब और घोड़े! कही भी ठहरो, कभी भी कही चल दो। सारी दुनिया तुम्हारी और तुम दुनिया के!
मम्मी घुड़सवारी किया करती थी। उनसे मै घोड़ों के किस्से सुनती रही। सो, घोड़े मुझे हमेशा आकर्षित करते रहे है। बड़े हो कर बहुत सारे घोड़े पालने के सपने देखने लगी। सपनो में उन घोड़ो के साधना कट बाल रखती।  उस समय की बहुत बड़ी होरोइन साधना  का एक हेयर स्टाइल साधना कट के नाम से बहुत लोकप्रीय हुआ था । पापा को बहुत पसंद आया, इसलिए मेरे बाल भी साधना कट स्टाइल में कटवा  दिये।
 मैने बचपन में तय किया था कि मै भी जिप्सी बनूंगी। बस फिर क्या, दुनिया भर में घूमती फिरूँगी। कहीं जाने के लिए कोई टिकट नहीं लेना होगा। फिर सारी  दुनिया मेरी होगी। जैसे उन जिप्सियों की थी! मै पापा-मम्मी से अलग अलग जगहों के बारे में तरह-तरह की बातें सुनती, फिर बच्चो को बगीचे के गेट पर इकठ्ठा कर, बना-बना कर कहानिया सुनाती।

Saturday, May 6, 2017

मेरे चाहने ना चाहने की बात




















मेरे चाहने ना चाहने की बात,
एक निवाले की तरह,
जा अटकी थी,
एक रौशन ख्याल, तरक्की पसन्द
मर्दानगी के गले,
फॉस बन चुभती रही,
साल दर साल,
अचानक बिना बात,
किसी बहाने,
मुस्कुराते होठो को लिये,
उसने मुझे काली कहा,
जो सिर्फ एक गाली थी.
[मुस्कुराते हुए, ना दिखते, पर दिखते हुए, कही ये एक मानसिक शोषण की बात तो नही?]      

Friday, May 5, 2017

 

        My paintings on Coffee mugs


                         Rabindranath Tagore


Albert Einstein

Tuesday, May 2, 2017

My painting on t-shirt.


My painting of Albert Einstein printed on t-shart

The important thing is not to stop questioning.

पहचान

नाखुश चेहरों के बीच, 
एक तुम के घर कभी, 
एक मै पैदा हुई थी कहीं .

गैरकानूनी थी नही,
सो तुम के नाम से सजी,
दबी रही तेरे एहसांनो तले.

तुम की पहचान को लिए,
बढ़ती रही हर रोज़,
तेरी चाह, इच्छाओ में बंधी।

बार बार कई तुम,
आते जाते रहे,
मै को देखने, परखने,
ले चलने अपने घर!

आखिर एक तुम,
मै को अपने घर ले जाने,
का एह्सान कर गया.

तेरे घर आंगन में,
तेरे नाम से लपेटी गई,
मेरी हिफाजत का जिम्मा,
अब तुम के कंधो पे था.

आयना की मै खुश थी ,
खूबसूरत गहनो कपड़ो में,
नज़ाकत से भरी

जल्द ही एक मै,
पैदा होने को थी,
पर पहले ही कत्ल हो गयी
फिर बार बार,
मै के आने से,
लाल हुआ था कोख.

आज चेहरे खुश थे.
क्यों की एक तुम थे कोख में.
मै खास बनी,
सब ने लाड़ दिखाया,
खिलाया, पिलाया,खूब सजाया
दर्द तकलीफ में डूबी,
कमजोर जिस्म लिए,
जिंदगी थी दाव पे लगी,
तब एक तुम थे,
इस दुनिया में आये.

पर मै की पहचान तो,
सादे पन्ने सी रही,
एक तुम का नाम ही,
तुमकी पहचान बनी.

हर तुम की सेवा,
मै का फ़र्ज़ था,
जिम्मेदारियों से लादना,
तुम का मै पर एहसान बना.

अब तुम जवां हुए,
मै के जख्म, झुर्रियों तले,
अब भी थे हरे.

अब, एक मै तेरे लिए भी,
ढूढ़ने, देखने, परखने,
मै ही थी चली.

नवेली का आना,
उसके कोख में बार बार,
कई मै का कत्ल होना,
मेरे मै के जख्मो की दवा बनी.

फिर तो नवेली का ही,
कोख में एक मै के साथ कत्ल होना,
एक आम बात बनी.

फिर से नई नवेली,
लाल पैरो के निशान का,
मैं का, दरवाजे के अन्दर आना।
शबनम गिल