Thursday, July 27, 2017

एक औरत की तकलीफ

तुम औरत होकर,
एक औरत की तकलीफ,
नहीं समझती ?
गुस्से से वो मुझपर चिल्लाया।

मैने पूछा,
सालों से चली आ रही,
मेरी तन्हाई,
उसका क्या ?

उस दर्द का क्या,
जो हर रोज़,
बढ़ते जख्मो से उभरे ?

उस रिसते खून का मेरा,
हिसाब कौन करे,
मानसिक शोषण को,
अपना हक बना,
जो औरत, मर्द, अपने, पराये,
हर कोई आज भी,
बहाता चला आ रहा ?
क्या मै एक औरत नहीं ?

वो चुप रहा,
भवें तान, होठों को भींचे,
ख़ामोशी से मुझे देखता,
क्योंकी मैं उसकी,
औरत नहीं थी,
जब तब के इस्तेमाल के लिए।
               शबनम गिल


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