Saturday, July 1, 2017

अच्छे दिन के इन्तजार में

पेट जा चिपकी है रीढ़ से,
बस एक टुकड़े रोटी की,
चाह है बाकी,
न जाने कब दिन बदले!
अब तो नसों में बहता खून,
ठहरने को है,
हड्डियों का ढांचा,
बदन के बोझ को उठाये हिचकोले खाता,
पिजड़ में अब भी कहीं,
एक दिल है धड़कता,
अच्छे दिन के इन्तजार में,
शायद एक टुकड़ा रोटी नसीब हो,
इस पेट को, जो जा चपका है रीढ़ से !

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