Tuesday, December 19, 2017

शालिनी

एक लाल पत्ता 


सुबह सुबह उसने गर्म बिस्तर में पड़ी शालिनी को एक लाल पत्ता दिया अौर कहा, "उसके शहर में एक मौसम आता है जब सारे पेड़ पहले लाल पत्तों से भर जाते है, फिर पीले पत्तों से। इसके बाद पत्ते झड़ जाते है"। ... शायद नये पत्तों के इंतजार में! अब एक लाल पत्ते से, पूरे पेड़ पर छाई लाली की खूबसूरती को भला कोई कैसे महसूस करे? ये लाल पत्ते की बात सिर्फ कुछ कहने के खातिर कही गई, उसके शहर की एक बात थी। जो शालिनी के शहर की बात नही थी अौर ना ही उस जनाब के माँ के शहर की बात, जहाँ वो पैदा हुआ था। उसकी माँ ने कभी उसके शहर को नही देखा, पर उस शहर को देखने की चाह, उस माँ के सीने के अन्दर कही  किसी गहरे, अंधेरे कूए में पड़ी रही उस कूए को सालो से खोदते, खोदते वो काफी दूर निकल चुकी थी ये कूआं उसके 'लाल' की खातिर ही खुदा, जिसने अपनी माँ के बुने पंख लगा कर उस लाल पत्तों वाले देश की तरफ उड़ जाना था। जो अब उसका देश उसका शहर बन गया लेकिन वो देश वो शहर उसकी माँ का नही था।
आधे ख्वाब से आधी जागी, बन्द आँखो को थोड़ा सा खोल कर शालिनी ने कहा, " वहाँ टेबल पर रख दो"
एक सूखा निर्जीव लाल पत्ता, एक सफेद निर्जीव लकड़ी के टेबल पर पड़ा था

शबनम गिल  

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